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मराठा शक्ति का उदय और शिवाजी

 

मराठा साम्राज्य का उदय-छत्रपति शिवजी 


मराठा शक्ति का उदय औरंगजेब  के समय में छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में हुआ था|  इनका जन्म 20 अप्रैल, 1627 में शिवनेर के किले में हुआ  इनके पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता नाम जीजा बायीं था।  पिता के द्वारा दूसरा विवाह तुकाबाई मोहिते नामक दूसरी महिला से कर लेने के कारण जीजाबाई अलग रहती थी।  शिवाजी ने मवाल क्षेत्र के लोगो के साथ मिलकर अपने विजयी अभियान की शुरुआत की। इन्होने अपने प्रशासन को सही ढंग से चलाने के लिये आठ मंत्रियों को नियुक्त किया, जिन्हे अष्टप्रधान कहते थे तथा इनमे सबसे बड़े पद को "वेदांत" कहते थे |

 
मराठा साम्राज्य के महत्वपूर्ण कर

मराठा प्रणाली के दो महत्वपूर्ण कर थे पहला चौथ और दूसरा सरदेशमुख ,चौथ-उपज का चौथाई अर्थात 1/4 भाग और सरदेशमुख- आय का 1/10 भाग होता था |

 

शिवाजी के गुरु

इनके गुरु निम्न थे -

  • कोकण देव- इनसे शिवाजी ने सैनिक शिक्षा प्राप्त किया
  • रामदास तथा तुकाराम - इनसे शिवाजी ने देश प्रेम तथा हिन्दू धर्म के प्रति अगाध प्रेम की शिक्षा प्राप्त किया



 

शिवजी की महत्वपूर्ण विजय

 

 शिवाजी की प्रारम्भिक विजय

शिवाजी ने अपने लक्षय को पूरा करने के लिए मालवा में रहने वालों से मित्रता की और मराठा जाति को संगठित कर एक सेना का गठन किया सन 1665 में बीजापुर के सुल्तान के बीमार होने के बाद शिवाजी ने उस पर आक्रमण कर तारेन, रायगढ़, पुरन्धर तथा कोंकण के किलों को जीत लिया |

 

शिवाजी की जावली पर विजय

जावली का शासक का नाम चन्द्रराव भोरे था| वह बीजापुर के सुल्तान का बहुत बड़ा भक्त था शिवजी ने अवसर पाकर जावली पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में मिला लिया |

 

शिवजी की कोंकण की विजय

जावली पर विजय प्राप्त के बाद शिवाजी ने कोंकण पर आक्रमण करके उस पर भी अपना अधिकार कर लिया |

 

शिवजी की बीजापुर की विजय

शिवजी को रोकने के लिये बीजापुर के सुल्तान ने सन 1659 में अपने सेनापति अफजल खां को शिवजी के विरुद्ध भेजा जिसमें एक बातचीत के दौरान शिवजी ने अवसर पाते ही उसे मार दिया तथा उसकी सेना को मार भगाया |  कुछ समय बाद में बीजापुर की सेना से शिवाजी का युद्ध हुआ इस युद्ध में शाहजी ने सन्धि करा दी इस संधि के बाद सुल्तान ने शिवाजी के द्वारा अधिकृत प्रदेशों का स्वामी बना दिया |

 

शिवजी का मुगलों से युद्ध

बीजापुर की विजय के बाद मुगलों के राज्यों पर चुपके से अकर्मण करना शुरू कर दिया इस तरह औरंगज़ेब ने शिवाजी की बढ़ रही शक्ति को रोकने के लिये अपने मामा शयस्त खां जो दक्षिण का सूबेदार था , को शिवाजी के विरुद्ध भेजा जिसमे शायस्त खां की विजय हुयी ओर पूना पर अपना अधिकार कर लिया जिसके बाद शिवाजी ने अपना भेष बदल एक बारात के रूप में पूना में प्रवेश कर मुगलो पर आक्रमण कर दिया और पूना पर अपना अधिकार स्थापित किया |

 

शिवजी की सूरत की लूट

एक के बाद एक विजय के पश्चात् शिवाजी का साहस लगातार बढ़ता ही जा रहा था इस प्रकार युद्धों में हुयी आर्थिक हानि को भरने के लिए सन 1665 में सूरत के समृद्ध नगरों को खूब लुटा और लगभग 1 करोड़ रूपये का मॉल प्राप्त कर अपनी सेना को और अधिक मजबूत बनाया |

 

शिवजी की पुरन्धर की सन्धि

यह सन्धि 11 जून, 1665 में हुयी। पुणे में शायस्त खां की असफलता के बाद औरंजेब  ने शिवाजी के पास अपने जनरल राजपूत शासक जय सिंह प्रथम और दिलेर खां को भेजा जिसमे जय सिंह ने पुरन्धर की पूरी तरह से घेराबंदी कर ली जिससे विवास होकर शिवजी को पुरन्धर की सन्धि के लिए  सहमति देना पड़ा इस सन्धि में निम्न बिन्दु थे |

*इस संधि के अनुसार शिवाजी ने 23 दुर्ग मुगलों को दिये।

*शिवाजी को जब  और जहाँ भी आवश्यकता पड़ेगी मुगलों को मदद करनी होगी |

*शिवजी के पुत्र संभाजी को मुग़ल दरबार का मनसबदार बनाया जायेगा और उन्हें 5000 मनसब दिया जायेगा |

*शिवजी स्वम मुग़ल दरबार में उपस्थित नहीं होंगे यदि उन्हें आंमत्रित किया जाता है इस स्थित में शिवाजी को मुग़ल दरबार में उपस्थित होना पड़ेगा |

 

शिवजी का कारावास और रिहाई

पुरन्धर की सन्धि के अनुसार शिवजी औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुये परन्तु अनुकूल सम्मान मिलने के कारण उन्होंने औरंजेब के सामने ही उनका विरोध किया जिस कारण औरंगजेब ने उन्हें बन्दी बना लिया।  जिसके बाद शिवजी चतुराई से मिठाई की टोकरी में बैठ कर दक्षिण भाग गये |

 

शिवाजी का राजयभिषेक

सन 1674 में शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाकर अपना राजयभिषेक किया जिसके बाद उन्होंने मिर्जापुर, बैलोर, कर्नाटक के दुर्गों पर विजय प्राप्त की।


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